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Biodiesel Farming | Jatropha Farming in India | रतनजोत की खेती | जेट्रोफा खेती

नमस्कार दोस्तों Biodiesel Farming | Jatropha Farming में आपका स्वागत है। आज हम डीजल की खेती के बारे में बात करने वाले है। भारत में पेट्रोलियम पदार्थों का प्रयोग दिन प्रतिदिन ज्यादा बढ़ता जा रहा है। उसके हिसाब से 70% पेट्रोलियम पदार्थों को दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है। और उसके विकल्प को देखते हुए। आज के समय में Biodiesel की भी मांग होने लगी है। आज हम biodiesel plant, what is biodiesel, biodiesel price, jatropha क्या है, जेट्रोफा का उपयोग की सम्पूर्ण जानकारी बताएँगे। 

हमारा देश पेट्रोलियम पदार्थों को अन्य देशों से आयात करने में प्रतिवर्ष 1600 बिलियन रुपये खर्च करता हैं। उसको रोकने के लिए ही ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य ईंधनों की अपेक्षा बायोडीजल के उत्पादन करने की सरकार ने योजना शुरू की थी। भारत में जैसे छत्तीसगढ़, बिहार, हरियाणा जैसे राज्यों में बड़े स्तर पर बायोडीजल प्लांट लगाए जाने थे। लेकिन अधिकारियो के भ्रष्टाचार सारे के सारे प्लांट को खत्म करदिया था। लेकिन राजस्थान और गुजरात के अंदर आज भी बड़े स्तर पर आज भी बायोफ्यूल जो है। जिसको प्राइवेट लोग चलाते हैं। तो चलिए रतनजोत की खेती में क्या करना चाहिए बताते है।

Biodiesel Farming

कच्चे तेल के उत्पादन में ठहराव और तेल की मांग में लगातार बढ़ती गति के साथ, भारत के पास आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ दोनों के लिए जीवाश्म ईंधन के विकल्प का उपयोग करने का अवसर है। इथेनॉल एक ऐसा विकल्प है जिसे गन्ने से उत्पादित किया जा सकता है और इसे पेट्रोल/गैसोलीन के साथ मिश्रित करके परिवहन के लिए उपयोग किया जा सकता है। उसका एक अन्य विकल्प बायोडीजल है, जिसे कुछ पौधों के तेल-असर वाले बीजों से बनाया जा सकता है। और डीजल के साथ मिश्रित किया जा सकता है।

biodiesel plant Images

पश्चिमी देशो में बायोडीजल का उत्पादन ज्यादातर यूरोप में रेपसीड और सन फ्लावर जैसी फसलों और अमेरिका में सोयाबीन से होता है। मलेशिया में ताड़ के तेल का उपयोग होता है। और भारत में जैव डीजल उत्पादन के लिए Jatropha का उपयोग करता है। उसको हिंदी में जंगली अरंडी और तमिल में कट्टुककोटाई कहा जाता है। यह बायोडीजल के उत्पादन की एक विशाल संभावना है क्योंकि वे जंगलों में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। और बंजर भूमि में भी बहुत आसानी से होता रहता है।

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जेट्रोफा के अन्य नाम

  • संस्कृत – पर्वत अरण्ड, काननअरण्ड, भद्रदन्तिका दुवन्त
  • हिंदी – रत्नज्योत, बाग़भेरण्ड, भगेरण्डा, जंगली अरण्डी
  • अंग्रेजी – जेट्रोफा, फिजिक, नट
  • बंगला – अरण्डागच्छ, भीरेण्ड बाग़भेरण्ड
  • तमिल – कदलमनाक्कू, स्तमनक्कू, स्त्तनमनाक्कू
  • तेलगू – नेपालामू, पेडडानेपालामू, अदावियामिदामू
  • मराठी – मोगली अरण्ड, रानेअरण्ड, वनअरण्ड, चन्द्रज्योत, चन्द्री मोगाली  रेन्दा
  • कन्नड़ – अदालूहरालू, बेटटाडाहरालू, मराहरालू, कारनोक्ची
  • गुजराती – रत्नज्योति, जमालगोटा, पारसी अरण्ड, कालाअरण्ड
  • आसामी – बोंगालीभोटोरा
  • मलयालम – कटटावनक्का, कत्तवंक कदलनक्का
  • उड़िया – जहाजीगबा, बायगाबा, नोरोकाकालों
  • पंजाबी – कालाअरण्ड, कालारेन्दा, जमालगोटा
  • उर्दू – जंगली अरण्ड, वैज्ञानिक नाम – जेट्रोफा करकास मिअर्स
jatropha biodiesel Photos

Biodiesel के लिए जलवायु एवं भूमि

बायोडीजल या रतनजोत की खेती करने के लिए, आपके पास कैसे भी जमीन हो यह सभी प्रकार की जमीन उपयोगी है। यह किसी भी जमीन में लगा सकते है। एक बात का ध्यान खास ध्यान रखना चाहिए। की जहा पौधा लगेगा वहां पर पानी नहीं भरना चाहिए। यानि पानी निकास करना बहुत जरुरी है। क्योकि ज्यादा पानी से पौधा खराब हो सकता है। पथरीली जमीन, ज्यादा रेतीली जमीन सूखाग्रस्त, असिंचित, कम गहराई एवं कम उपजाऊ और समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले तथा बंजर भूमि में होता है।

रतनजोत की खेती फोटो

रतनजोत की खेती में बुवाई

ratanjot ki kheti के रोपण में एक हैक्टर के लिए 5-6 किलो बीज की जरुरत होती है ! पौध की क्यारियों या पॉलीथीन की थैलियों में मार्च-अप्रैल में तैयार करना चाहिए। उस क्यारियों में 10-15 सेमी की दूरी पर बुवाई करनी चाहिए। एक थैली में दो बीज डालके पहले झारे से सिंचाई करनी चाहिए। बीज को 1-2 सेमी. से अधिक गहरा नहीं डालना चाहिए। उसके रोपण दो तरीके से करते हैं। जिसमे सीधे बीज से और पौध नर्सरी से ला सकते है। रोपण/बुवाई मानसून के मौसम में यानि जुलाई से अगस्त में 30 X 30 सेमी का गड़ढ़ा खोदकर करनी चाहिए। वृक्षारोपण हेतु कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी 3 मीटर रखें और असिंचित, बंजर, परती और चारागाह जमीन में दूरी 2 मीटर रखें।

Jatropha Farming in India Photos

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Biodiesel Farming फसल में रखरखाव

एक बार स्थापित होने के बाद उसका विकास तेजी से होता है। पांच महीने के भीतर, बरसात के मौसम में सभी वनस्पति विकास के साथ। पेड़ आमतौर पर दूसरे में फूल आने के बाद अपना पहला फल देते हैं। बरसात के मौसम से पहले  विकासशील पत्ती चंदवा द्वारा जमीन को छायांकित किया जाता है। खरपतवारों को नियमित रूप से नियंत्रित करना जरुरी है। कम चौड़ा उगने वाला पेड़ जो कटाई में आसान होता है। और मुख्य तना 30-45 सेमी तक काटा जाता है। पैदावार में सुधार के लिए पेड़ों को 45 सेंटीमीटर स्टंप तक काटने की सिफारिश की जाती है। पुन: वृद्धि तेजी से होती है और एक वर्ष के भीतर पेड़ फिर से फलने लगेंगे। 

Ratanjot Ki Kheti में उर्वरक

जटरोफा को अक्सर कम पोषक तत्वों की आवश्यकता के रूप में वर्णित किया जाता है। क्योंकि यह खराब मिट्टी में बढ़ने के लिए अनुकूलित है। हालांकि, एक उत्पादक बढ़ रहा है। फसल को सही उर्वरक और पर्याप्त वर्षा या सिंचाई की आवश्यकता होती है। समान रूप से, उर्वरक का उच्च स्तर और अत्यधिक सिंचाई उच्च को प्रेरित कर सकती है। भारत में बंजर भूमि पर विभिन्न रोपण घनत्व अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान में एक परीक्षण से तय किया जाता है की मिट्टी की उर्वरता के स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों ही देना होता है। 

जेट्रोफा की खेती की फोटो गैलरी

रतनजोत की खेती के लिए सिंचाई

पानी की आवश्यकताएं देखे तो पानी की जरूरत  बहुत  रहती हैं। शुष्क मौसम (मार्च से मई) में दो सिंचाई जरुरी होती है। Ratanjot ki kheti सूखे के प्रति बहुत सहनशील होती है। उसिलिये पानी की कमी और अधिक गर्मी को सहन कर सकता है। लेकिन प्रति माह सिंचाई देने से अधिक उपज प्राप्त होती है। अगर  सिंचाई की सुविधा नहीं हो तो कटाई-छंटाई के पश्यात एक सिंचाई जरूर करनी चाहिए। नहीं तो आपके पौधे जरुरी विकास नहीं कर सकते है। 

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फल तुड़ाई

यह फसल लगाने के बाद ही 1 साल बाद पौधा फल देगा 1 साल बाद के फसल ले सकते हैं। पहले साल में थोड़ी कम होती है। दूसरे साल तो दुगुनी हो जाती है तो तीसरे साल 3 गुना फसल होती है। रोपण के बाद पौधों में फल लगने मीक साल लगता है। फल गुच्छे के रूप में लगते हैं। जिस समय उसके फल काले पड़ जाये तब तोड़कर सुखाने के लिए रखना होता है। और ऊपर का छिलका हटा कर काले रंग के बीज निकाल उसको ही बेचना होता है।

रतनजोत की खेती इमेज

Biodiesel में उपज

बारिश के मौसम में रतनजोत के पौधे में फूल आना शुरू होजाता है। और दिसंबर से जनवरी महीने में हरे रंग के फल काले होने लगते हैं। जिस समय फल का ऊपरी भाग काला पड़े तो वह फल तैयार होजाता तब तोड़ा जा सकता है। उसमे प्रथम वर्ष में बीज उत्पाद नहीं होता है। दूसरे वर्ष में थोड़ा सा उत्पादन शुरू होता है। और तीसरे वर्ष में 500 ग्राम प्रति पेड़ और 12.5 क्विंटल/हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलना शुरू होता है। यह फसल में तक़रीबन 35 से चालीस साल तक बीज प्राप्ति होती रहती है। जिससे किसान मुनाफा निकाल सकता है। 

Biodiesel Farming Video

Interesting Fact

  • बायोडीजल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है। 
  • उदयपुर, डूंगरपुर बांसवाड़ा, राजसमंद और चित्तौड़गढ़ जिलों में यह पौधे मिलते हैं। 
  • आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से जैट्रोफा की खेती होती है। 
  • यह वायुमंडल से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का अवशोषण करता है।
  • खेती के लिए भारत सरकार की ओर से कई प्रोत्साहन योजनाएं प्रारंभ की गई हैं। 
  • जैट्रोफा का पौधा बहुत ही कम समय में बढ़कर तैयार हो जाता है। 
  • बायोडीजल सरल जैव निम्नीकृत, न खत्म होने वाला, स्वच्छ और कार्यदक्ष ऊर्जा स्रोत है।
  • पौधा अगर जानवर खा लेता है, तो जानवर बीमार हो सकता है। 
  • मार्केटिंग के लोगों से मिलने के बाद ही इस फसल को लगाएं। 

Biodiesel Farming FAQ

Q : बायोडीजल पौधा कौन सा है?

जेट्रोफा या रतनजोत बायो डीजल का पौधा है।

Q : जेट्रोफा को हिंदी में क्या कहते हैं?

जेट्रोफा को हिंदी में रतनजोत कहते है। 

Q : जेट्रोफा से क्या बनता है?

जेट्रोफा से बायोडीजल बनता है। 

Q : रतनजोत का वानस्पतिक नाम क्या है?

रतनजोत का वानस्पतिक नाम जैट्रोफा करकस (Jatropha Curcas) है। 

Q : रतनजोत के बीज कैसे होते हैं?

रतनजोत के बीज काले और वह एक आयुर्वेदिक औषधीय जड़ी बूटी है। 

Conclusion

आपको मेरा Biodiesel Farming | Jatropha Farming in India बहुत अच्छी तरह से समज आया होगा। 

लेख के जरिये हमने Biodiesel production, बायोडीजल खेती, जेट्रोफा की खेती कैसे करें

और jatropha biodiesel cultivation से सम्बंधित जानकारी दी है।

अगर आपको अन्य किसी खेत उत्पादन के बारे में जानना चाहते है। तो कमेंट करके जरूर बता सकते है।

Note

आपके पास Biodiesel production plant, jatropha biodiesel production process या रतनजोत की कीमत की कोई जानकारी हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो दिए गए सवालों के जवाब आपको पता है। तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इसे अपडेट करते रहेंगे धन्यवाद।

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